सिर्फ कपूर की एक टिकिया, आपके भाग्य बदल देगा


एक कपूर की टिकिया आपकी जिन्दगी भी बदल सकती है। आपकी माथे की दर्द ठीक कर सकती है। आपके काम-काज,  धन वृद्धि में सहायक हो सकती है। आपके घर में दुर्गन्ध या नाकारात्मक शक्ति को समाप्त करती है। कपूर की टिकिया आपके सौभाग्य- वर्द्धन कर सकती है ।

कपूर को विविध नामों से जानते है जैसे कि- कर्पूर, काफूर, इन्दु, गौर, तरुसार, निशापति, रेणुसार, शीतांशु, विधु, वेधक, शिला, स्फटिकाभ्र, हिमांशु, हिमबालुका ।

कपूर का प्रयोग - लगभग सभी जातियों और धर्मों में पूजा-पाठ, मंगल-कार्य, आरती-हवन आदि में किया जाता है। यह बाजार में-पंसारी, परचून आदि की दुकान पर बड़ी आसानी से मिल जाता है ।

कपूर के उत्पत्ति का स्थान क्या है  ?

कपूर एक पौधे का मानवकृत सुगन्धित तत्व है । असली 'कपूर' की सुगन्ध - तीखी, टिकाऊ और ठण्डी होती है, जबकि, नकली कपूर की सुगन्ध - कम, धीमी और अस्थायी होती है। असली 'कपूर' कुछ अधिक समय तक टिकता है, जबकि नकली कपूर थोड़े समय में उड़ जाता (गायब हो जाता) है। इसकी सुरक्षा और स्थायित्व के लिये इसकी डिब्बी में 4-6 लौंग रख देनी चाहिये क्योंकि लौंग के साथ रहने पर यह उड़ने से बचा रहता है । 

उत्पत्ति की अद्भुत मान्यता- भारतीय-ज्योतिष में यह माना गया है कि- आकाश में 27 नक्षत्र होते हैं। इन सत्ताईस नक्षत्रों में से एक नक्षत्र (तारा-समूह) है जिसका नाम है स्वाति । ऐसी मान्यता है कि- जिस समय स्वाति-नक्षत्र आकाश में उदित हो, उस समय की वर्षा का जल यदि केले के पौधे पर (पत्तों से उद्गम संधिस्थल में) गिरें, तो उससे 'कपूर' की उत्पत्ति होती है।

परन्तु यथार्थ यह है कि आज के युग में कपूर का निर्माण-स्वाति बूँद से न होकर, मानव-कृत उपायों से ही होता है। यह उसी रूप में ग्राह्य और प्रयोज्य है, जैसा कि बाजार में मिलता है। तान्त्रिक प्रयोगों के लिये- वह निश्चित रूप से लाभकारी सिद्ध होता है ।


कपूर का स्वरूप

कपूर- सफेद, मोम की तरह कोमल, सुगंध में प्रिय, उड़नशील और तीव्र होता है ।

सौभाग्य-वर्द्धन हेतु

अपने घर-दुकान पर पूजा के समय आरती में कपूर का प्रयोग करें। कपूर अत्यधिक ज्वलनशील पदार्थ है और यह जहाँ भी जलता है, वहाँ के समस्त वायव्य दोषों को दूर कर देता है। इस प्रकार से आरती में कपूर जलाने से सभी ऊपरी बाधायें दूर होती हैं और सौभाग्य में वृद्धि होती है ।

धन-वृद्धि की अद्भुत मान्यता


 श्री यन्त्र, हाथाजोड़ी, जम्बुकी, श्रीफल, एकाक्षी नारियल, दक्षिणावर्ती शंख, दत्त-यन्त्र- आदि की साधना करते समय उन पर पुष्प इत्यादि के साथ-साथ कपूर भी समर्पित करें। ऐसा करने से उक्त तान्त्रिक वस्तुओं की प्रभावशीलता बहुत अधिक बढ़ जाती है । 

मस्तक-पीड़ा दूर करने के लिये

कपूर को किसी कपड़े (रूमाल आदि) में रखकर सूँघते रहें। इसके अतिरिक्त, कपूर को किसी तेल या गो-घृत (गाय के दूध से बने हुये घी) में घिसकर अपने माथे पर लगायें- पीड़ा शान्त हो जायेगी ।

दुर्गन्ध और कीटाणु-निवारण के लिये 

कहीं दुर्गन्ध फैल रही हो अथवा वातावरण में किसी प्रकार के कीटाणु फैल गये हों तो किसी बर्तन आदि में कपूर रखकर उसे जलाना चाहिये- ऐसा करने से वातावरण - शुद्ध, सुगन्धित और स्फूर्तिदायक हो जाता है। कपूर को जलाने पर वह पाँच-दस मिनट में पूर्णतः समाप्त हो जाता है, इसलिये आवश्यकता के अनुसार प्रत्येक डेढ़-दो घण्टे के बाद में पुनः कपूर जलाया जा सकता है । आवश्यकता होने पर कपूर का चूर्ण करके आस-पास छिड़क भी सकते हैं। यदि कहीं पर किसी प्रकार के संक्रामक रोग (जैसे- हैजा, प्लेग आदि) फैल रहे हों तो यह प्रयोग अवश्य ही करना चाहिये ।

हवन-सामग्री में प्रयोग 

हवन करते समय हवन सामग्री में कपूर का प्रयोग अवश्य करना चाहिये क्योंकि ऐसा करने से उसके प्रभाव में अत्यधिक वृद्धि हो जाती है। लेकिन ध्यान रखने की बात यह है कि इसका प्रयोग केवल सात्विक कार्य करते समय ही करना चाहिये, तामसिक-साधना में नहीं करना चाहिये ।

इस तरह से एक टिकिया कपूर की आपकी ज़िन्दगी में बहुत कुछ बदल सकता है। वैसे आप इस खबर के बारे में क्या सोचते हैं कमेंट जरुर किजिए।

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