Life ki yahi reality hai,
लेखक : रंजन कुमार ( @Public_Poll )
नई दिल्ली : बुढ़ा कभी जवान था, जवान कभी बच्चा था । बहुतायत लोगों की शादी होती है। लेकिन बिना मां का किसी का भी जन्म नहीं होता है। यह बात सभी जानते है। जबकि वह मां भी महिला ही होती हैं। ये भी सब जानते हुए भी महिलाओं का सम्मान नहीं करते हैं। यदि पुत्र बहू से थोड़ा ज्यादा प्रेम करता है, तो परिवार के सभी लोग और मां भी बोल उठती हैं कि बेटा पत्नी मोह में पड़ चुका है।
हालाकि मां और पिता भी दादा दादी के सामने ये झेल चुके हैं। बहन को भी लगता है, कि भाभी में दिक्कत है। लेकिन उसे भी अपने ननद से परेशानी है। सभी महिलाएं किसी की मां है। किसी की पत्नी तो किसी की भाभी इत्यादि कई प्रकार के रिश्ते है, और इस बात से पुरुष भी भली भांति परिचित हैं। परंतु कोई भी महिला किसी अन्य महिला को क्यों बर्दास्त नहीं कर पाती है। मुझे लगता है, इसके पीछे सिर्फ श्वार्थ हैं।
घर से निकलने के बाद लगभग हर पुरुष के मन में सामने दिखाई दे रही दूसरी महिलाओं के विषय में क्या क्या मन में ही सोंचते है, और कुछ तो सारी हदें पार कर जाते हैं। बावजूद इसके कि उसके यहां भी मां, बहन, बेटी इत्यादि सब कोई है। विषय गंभीर और चिंता जनक है ही पता नहीं ये कब शुरू हुआ और कब तक चलेगा।
आपको ज्ञात हो कि त्रेता युग में भी जब प्रभु श्री राम का जब बनवास हुआ। उसके बाद सीता हरण हुआ। प्रभु श्री राम ने लंका पर विजय प्राप्त किया। उस समय भी माता सीता पर कई सारे लांछन लगे और अग्नि परीक्षा देनी पड़ी। हर समय महिलाओं को ही अपनी पवित्रता का प्रमाण देना पड़ा है।
द्वापर युग का एक वाक्या आपके सामने रखता हूं। नरकासुर नामक एक दैत्य ने 16 हजार कन्याओं को बंधक बनाकर रखा था। भगवान श्री कृष्ण ने उसका वध करके, उन कन्याओं को मुक्त कराया। उस समय भी समाज के लोगों के डर से 16 हजार कन्याओं ने श्री कृष्ण से कहा की आप हमारा उद्धार करें, नहीं तो यह समाज हमें जीने नहीं देगा।
उन सभी कन्याओं ने भगवान श्री कृष्ण से शर्त रखा की आप ही हमसे शादी कीजिए और अपना नाम दीजिए। तब भगवान श्री कृष्ण ने उन सभी से विवाह किया और सभी को अपना नाम दिया। आपको क्या लगता है। भगवान श्री कृष्ण हो या भगवान श्री राम दोनों 0.01% में आते हैं आज भी समाज में 0.01% लोग हैं जो महिलाओं के सम्मान के लिए कुछ भी कर गुजरने की चाहत रखते हैं। लेकिन आज यह बहुतायत लोग उन्ही पर लांछन लगा देते हैं, और समाज में बदनामी के डर से उन्हे भी चुप होना पड़ता है।
आज कानून के रखवाले भी महिलाओं के साथ दुष्कर्म करके कई लोग जेल की हवा खा रहे हैं। यह प्रकरण समाज भी बखूबी दिखता है, और जनता भी है लेकिन इसके बावजूद फिर भी लोग महिलाओं की इज्जत नहीं करते है। हर कोई मौके की फिराक में रहता है।
क्या लगता है, मेरे कुछ शब्द समाज को सुधार सकता है। बिल्कुल भी नहीं इसलिए की समाज गलती करने के बाद भी नहीं सीख पाता है तो मेरे चंद शब्द से क्या फर्क पड़ता है। चलिए मेरे हृदय में जो था, जो महिलाओं की लिए उमड़ पड़ा उसे मैने व्यान करना उचित समझा बाकी आप सभी समझदार और होशियार है ही।
अंत में एक एक और वाक्या आपके सामने रखना चाहूंगा, कि हम सभी किसी लड़की या महिला पर अत्याचार होते मजे और चटकारे लगाकर देखते और सुनते हैं। लेकिन जब अपनी बारी आती है तो समाज को खूब लताड़ते है और दोषी भी मानते है। लेकिन हम ये क्यों भुल जाते हैं कि हमारे पास भी एक न एक दिन यही समय घूमकर आने वाला है।
बहरहाल हम सबके घर में मां, बहन, बेटी इत्यादि कई रिश्ते होते हुए भी महिलाओं की इज्जत नहीं कर पाते हैं। चलिए आपकी सब की जैसे इच्छा हो। अंत में मैं आप सभी से यही अनुरोध करूंगा, कि आप सभी चाहे किसी को धर्म संप्रदाय से है। मानवता और इंसानियत हमारा प्रथम धर्म है। इसकी रक्षा करना हमारा प्रथम कर्तव्य है और इस मानवता को सींचने वाली पालन करने वाली महिला ही है और इसका सम्मान करें।
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