Champan ke kyu darte hai, किस बात को सोचकर डर जाते हैं चम्पारण के लोग

 


Champan ke kyu darte hai,

पटना : बिहार का वह जिला जिसका नाम सुनते ही लोगों की रूह कांप जाती थी। दूसरे जिला के लोग नाम तक नहीं सुनना चाहते थे। वहीं इस जिला के लोग भी इतने दहशत में रहते थे, कि शाम होते ही लोग अपने-अपने घरों में दुबक जाते थे। यदि कोई किसी अन्य संबंधों में या शादी फंक्शन में चले गए होते थे, तो डर से शाम में वापस नहीं आते थे। यह डर किसी भूत प्रेत का नहीं ? यह डर किसी जीन-जीनाद का नहीं, किसी आदमखोर जानवर का नहीं। यह डर था उन बेरहम इंसानों का जिसको डाकू कहते थे। वह इतनी खतरनाक होते थे, कि शाम में कोई सुनसान रास्ते से गुजरते हुए मिल जाए तो शर्ट पेंट जूते चप्पल तक उतरवा कर छीन लेते थे।

वह दौर था, कि आम आदमी को कौन कहे ? पुलिस प्रशासन भी डर के माहौल में जीता था। वह भी इस कदर डरा हुआ रहता था की पता नहीं कब कहां मुठभेड़ हो जाए, और किसके साथ क्या हो जाए। यह सोच से परे होती थी। जब डाकू किसी पुलिस वाले को पकड़ लेते थे, तो बहुत ही बेरहम यातना देते थे। उंगलियों के नाखून, उखड़ देते थे। हाथ पैर तोड़कर कई घंटे तड़पते थे, और अंत में पूरे शरीर को गोलियों से छलनी कर देते थे। हालांकि ठीक उसी तरह जब कोई डाकू भी किसी पुलिस वाले के हाथ लगता था, तो उसके साथ भी पुलिस वाले इतने ही बेरहमी से पेश आते थे। यह पुलिस और डाकू वाला सिलसिला चलता रहता था।

पुराने जमाने से ही हर इंसान का कोई ना कोई दुश्मन होता ही है।अगर किसी के पास 10-20 हजार रुपए भी किसी न किसी मद में आ जाते थे, तो उसके पास किसी न किसी पार्टी (डाकुओं का संगठन) का लेवी वाला लेटर पहुंच जाता था। उस दौर में किसी भी गांव में एक, दो मोटरसाइकिल ही देखने को मिलता था। यदि किसी ने संध्या में मोटरसाइकिल से किसी डाकू के दल के सामने दिख गया, तो मोटरसाइकिल सहित उसको अगवा कर लिया जाता था। डाकू मोटरसाइकिल तो रख ही लेते थे, उस व्यक्ति के जान के बदले लाख 2 लाख रुपए लेवी मांगने लगते थे। हालांकि उसे आदमी की हैसियत के अनुसार रुपए घाट और बढ़ भी जाते थे। फिरौती के रुपए मिलने के बाद अपहृत व्यक्ति को परिवार के लोगों के नाम पर धमकी दे कर मुक्त कर दिया जाता था। कहा जाता था कि यदि किसी थाना पुलिस के पास गया, तो उसके बाल बच्चों को गोली मार दिया जाएगा। Champan ke kyu darte hai,

यह दहशत का क्षेत्र बिहार के चंपारण जिला में काफी प्रचलित था। जिला में तीन अनुमंडल बेतिया, नरकटियागंज, बगहा के सभी क्षेत्रों में डाकुओं का राज चलता था। चम्पारण से सटे जिला पूर्वी चंपारण, शिवहर, सीतामढ़ी, गोपालगंज, सिवान, आरा और बक्सर भी इसके चपेट में रहते थे। सरकार राष्ट्रीय जनता दल का चल रहा था। लगातार 15 साल से लालू यादव की शासनकाल में इन अपराधियों ने जो सर उठाकर तांडव मचाया। उसके लिए विश्व के पटल पर चंपारण शर्मशार होता रहा है। बिहार बदनाम होता गया।

वर्ष 2003-04 के बाद से जब मोबाइल फोन ने अपना पैर फसाना शुरू किया। लोग मोबाइल फोन की माध्यम से दूसरे क्षेत्र के संपर्क में रहने लगे। पुलिस प्रशासन से संपर्क साधने में आसानी हो गई। सूचनाओं के आदान-प्रदान ने डाकुओं के गतिविधियों पर अंकुश लगाना शुरू किया। उसके बाद सरकार बदल गई, बिहार बदलने लगा, सभी डाकू शांत होते गए। कुछ ने सरेंडर किया, कुछ ने धंधा छोड़ दिया, उम्र का तकाजा रहा कुछ इस दुनिया से रुखसत हो गए।
बहरहाल तस्वीर में दिख रही यह वही क्षेत्र है, जहां डाकू अपना ठिकाना रखते थे। गर्मी, बरसात हो, या कड़ाके की ठंड, डाकुओं का घर-द्वार, हॉट-हवेली सब इसी दियारा में के क्षेत्र में होता था। आज सब कुछ वीरान है। आज लोग बेखौफ आधी रात को भी इस रास्ते से सफर कर रहे हैं। लेकिन जो लोग उसे दौर को देखे हैं। इस सुनसान रास्ते में उनकी सांस आज भी थम जाती है। Champan ke kyu darte hai,

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